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धर्म के अन्तिम लक्ष्य आत्मज्ञान में स्वयं प्रतिष्ठित हो स्वामीजी ने जो धर्म सम्बन्धी वत्तृताएँ दीं, वे स्वत:सिद्ध दिव्य आध्यात्मिक अनुभूति पर आधारित थीं और इसीलिए उनके शब्दों का असाधारण महत्त्व है। प्रस्तुत पुस्तक में स्वामीजी ने धर्मतत्त्व की सम्पूर्ण वैज्ञानिक, युक्तियुक्त व्याख्या की है। स्वामीजी का कथन है कि मोक्ष अथवा भगवत्प्राप्ति ही समस्त धर्मों का एकमात्र अन्तिम ध्येय है तथा विधि-अनुष्ठान, ग्रन्थ, मतमतान्तर आदि धर्म के गौण अंग हैं। अत: केवल इन्हीं में न उलझकर, इनकी सहायता से धर्म के अन्तिम लक्ष्य पर पहुँचना ही धर्म का सार तत्त्व है। ज्ञान, भक्ति, कर्म और ध्यान — ये इस लक्ष्य तक पहुँचने के विभिन्न मार्ग है। इन सभी मार्गों का विवेचन करते हुए प्रस्तुत पुस्तक में स्वामीजी ने दर्शाया है कि साधक को किन गुणों को आत्मसात् करना अनिवार्य है; साथ ही अत्यन्त युक्तियुक्त शब्दों द्वारा यह भी बतलाया है कि समस्त विभिन्न धर्म उसी एकमात्र ध्येय आत्मज्ञान अथवा ईश्वर प्राप्ति की ओर ले जाते हैं। यही तथ्य ध्यान में रखते हुए यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने धर्म के अनुसार वास्तविक आन्तरिकता से धर्म-साधन करे तो संसार के सभी धार्मिक एवं साम्प्रदायिक द्वन्द्व मिट जाएँगे। पुस्तक के अध्ययन के उपरान्त पाठकगण स्वयं यह देखेंगे कि यथार्थ धर्मतत्त्व को जानकर तदनुसार जीवन को ढालना ही व्यक्ति के अपने निजी जीवन में, साथ ही विश्व में, शान्ति स्थापित करने का एकमात्र मार्ग है।
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- AuthorSwami Vivekananda