





H269 Swami Vivekananda Ki Vaigyanik Pratibha (स्वामी विवेकानन्द की वैज्ञानिक प्रतिभा)
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अभी तक स्वामी विवेकानन्द को समाज में प्रमुख रूप से एक धर्माचार्य एवं देशप्रेमी संन्यासी के रूप में ही जाना जाता है। परन्तु धर्म और विज्ञान दोनों में ऐक्य स्थापित करने का प्रयास भी स्वामी विवेकानन्द ने किया था, ऐसा प्रायः लोगों की दृष्टि से ओझल है। स्वामी जी ने धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करने के लिये देशवासियों को जितना प्रेरित किया था उतना ही उन्होंने भारतीय समाज में वैज्ञानिक मानसिकता उत्पन्न करने तथा उससे भी अधिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी को विकसित एवं संवर्धित करने पर बल दिया था।
स्वामी विवेकानन्द मानते थे कि भारतीय राष्ट्र के पुनरुत्थान हेतु पश्चिमी विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता है ताकि हम उनके द्वारा अपने दैनन्दिन जीवन की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। परन्तु इसके साथ ही और उससे भी कहीं अधिक वे जनमानस वैज्ञानिक मानसिकता उत्पन्न करने की आवश्यकता का अनुभव करते थे। सामान्यतः वैज्ञानिक मानसिकता को उच्च कोटि के वैज्ञानिकों तथा प्रयोगशालाओं तक सीमित कर दिया गया है। विज्ञान को प्रयोगों एवं समीकरणों तक सीमित नहीं किया जा सकता। ध्यान रहे, प्रयोगशालाओं ने मनुष्य को वैज्ञानिक नहीं बनाया, मनुष्य ने ही प्रयोगशालाओं को बनाया है।
आज भी प्रायः लोग यह मानते हैं कि हिन्दुओं में देश-प्रेम जगाना स्वामी विवेकानन्द का सबसे बड़ा योगदान है। देश-प्रेम की लहर तथा हिन्दुत्व के पुनर्जागरण का कारण उसकी वैज्ञानिकता है और इसी वैज्ञनिक मानसिकता को देशभर में जगाना स्वामी विवेकानन्द का विशिष्ट कार्य था। लोगों को यह जानकर और भी अधिक आश्चर्य होगा कि स्वामी विवेकानन्द धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में केवल वैज्ञानिक मानसिकता लाने के ही पक्षधर नहीं थे अपितु देश को भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, प्राणिशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र , यंत्र विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, आनुवांशिकीय अभियंत्री, जैव तकनीकी, नाभिकीय तकनीकि, सूचना तकनीकी आदि विज्ञान की सभी विधाओं एवं शाखाओं में पारंगत देखना चाहते थे।
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- AuthorDr. Sureshchandra Sharma