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Swami Vijnyanananda : Samsmaran ( स्वामी विज्ञानानन्द प्रत्यक्षदर्शियों के संस्मरण  )
Swami Vijnyanananda : Samsmaran ( स्वामी विज्ञानानन्द प्रत्यक्षदर्शियों के संस्मरण  )
H263 Swami Vijnyanananda : Samsmaran (स्वामी विज्ञानानन्द प्रत्यक्षदर्शियों के संस्मरण)
H263 Swami Vijnyanananda : Samsmaran (स्वामी विज्ञानानन्द प्रत्यक्षदर्शियों के संस्मरण)
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H263 Swami Vijnyanananda : Samsmaran (स्वामी विज्ञानानन्द प्रत्यक्षदर्शियों के संस्मरण)

Non-returnable
Rs.75.00
Translator
Swami Brahmeshananda
Language
Hindi
Publisher
Ramakrishna Math, Nagpur
Binding
Paperback
Pages
214
ISBN
9788195237180
SKU
H263
Weight (In Kgs)
0.18
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Product Details
Specifications
"“हिन्दी में स्वामी विज्ञानानन्दजी विषयक तीन पुस्तकें उपलब्ध हैं, लेकिन उनमें उनके संस्मरण नहीं हैं। अतः हमने यह उचित समझा कि उनका अनुवाद छापा जाय।



संकलनकर्ता-द्वय ने अपनी ‘भूमिका’ में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि लेखों को सजाने में कोई नियम अथवा क्रम-बद्धता का पालन नहीं किया गया है। जैसे जैसे लेख आते गये वैसे वैसे उन्हें सजा दिया गया। प्रथम संस्करण के बाद ३६ वर्षों में बंगाली पुस्तक के दो पुनर्मुद्रण हुए हैं, लेकिन इसके लेखों को नये सिरे से पुनः सजाने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया है। हमने इस संकलन में पहले संन्यासियों के, और बाद में गृहस्थ भक्तों के संस्मरण सजाये हैं।



मूल बंगाली पुस्तक की भूमिका में संकलनकर्ताओं ने यह भी स्वीकार किया है कि संपादन में बहुत सी त्रुटियाँ रह गयी हैं। इनका एक कारण यह है कि इसमें संस्मरण भेजने “वालों की भाषा और लेखन शैलियाँ भिन्न हैं। किसी ने आध्यात्मिक जीवन पर एक लेख सा लिखकर उसमें दो चार संस्मरण डाल दिये हैं। किसी ने स्वामी विज्ञानानन्दजी की संक्षिप्त जीवनी ही लिख दी है। अतः अनुवादक स्वामी ब्रह्मेशानन्द ने इन विभिन्न लेखों को थोडा-बहुत संपादित किया है, जिससे समरसता आ सके।



स्वामी विज्ञानानन्दजी एक ब्रह्मज्ञ महापुरुष थे। श्रीशंकराचार्य ने ‘विवेकचूड़ामणि’ में ऐसे महापुरुष के बारे में कहा है :



क्वचिन्मूढो विद्वान् क्वचिदपि महाराजविभवः



क्वचिद्भ्रान्तः सौम्यः क्वचिदजगराचारकलितः।



क्वचित्पात्रीभूतः क्वचिदवमतः क्वाप्यविदित-



श्चरत्येवं प्राज्ञः सततपरमानन्दसुखितः॥५४२॥



कभी वह अज्ञानी के रूप में, तो कभी विद्वान् के रूप में निवास करता है; कभी सम्राट् के समान वैभव में रहता है, कभी पागल के समान भ्रमण करता है, कभी सौम्य या प्रिय रूप में प्रकट होता है और कभी अजगर के समान निश्चल पड़ा रहता है; कभी वह सम्मानित होता है, कभी अपमानित होता है और कभी दूसरों से अज्ञात रहता है; ब्रह्मज्ञ पुरुष इसी प्रकार निरन्तर परमानन्द में सुखी रहते हुए (पृथ्वी पर) विचरण करता है।



ये लक्षण स्वामी विज्ञानानन्दजी के विषय में अत्यन्त उपयुक्त हैं। इन संस्मरणों को पढ़ते समय पाठक स्वयं अनुभव करेगा कि वे सचमुच एक ब्रह्मज्ञ महापुरुष थे और वह उनके सान्निध्य का अनुभव कर धन्य हो जाएगा।”



: सुरेशचन्द्र दास और ज्योतिर्मय बसुराय द्वारा संकलित और सम्पादित. “स्वामी विज्ञानानन्द प्रत्यक्षदर्शियों के संस्मरण.” iBooks. "


General
  • Author
    Compilation
  • Translator
    Swami Brahmeshananda
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