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H259 Adhunik Yug Me Adhyatmik Adarsha (आधुनिक युग के आध्यात्मिक आदर्श)
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H259 Adhunik Yug Me Adhyatmik Adarsha (आधुनिक युग के आध्यात्मिक आदर्श)

Non-returnable
Rs.15.00
Author
Swami Virajananda
Compiler/Editor
N/A
Translator
Dr. Sureshachandra Sharma
Language
Hindi
Publisher
Ramakrishna Math, Nagpur
Binding
Paperback
Pages
40
ISBN
9789353181215
SKU
H259
Weight (In Kgs)
0.06
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Product Details
Specifications
प्रस्तुत पुस्तिका में रामकृष्ण मिशन के छठवें परमाध्यक्ष (१८७३-१९५१) श्रीमत् स्वामी विरजानन्द महाराज के लेखों को प्रकाशित किया जा रहा है जो मूल रूप से प्रबुद्ध भारत एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए थे। ये लेख श्रीरामकृष्णदेव, श्रीसारदादेवी और स्वामी विवेकानन्द के जीवनादर्शों पर विचारोद्दीपक प्रकाश डालते हैं।

समाज आज यद्यपि महापुरुषत्रयी से भली प्रकार परिचित है; परन्तु परिवर्तनशील सामाजिक सन्दर्भों में उनकी पुनः पुनः प्रस्तुति चलती रहनी चाहिए। कारण, मूल विषय वस्तु को जब अधिकारी पुरुष द्वारा प्रस्तुत किया जाता है तो उसमें एक नवीन ऊर्जा का संचार होता है जिससे पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। पाठकगण पद-पद पर इस सत्य का अनुभव करेंगे।

श्रीरामकृष्ण, श्रीमाँसारदा और स्वामी विवेकानन्द के जीवनादर्शों को स्वामी विरजानन्द जी महाराज ने एक विचारक की हैसियत से प्रस्तुत किया है जो आधुनिक युग के सर्वथा अनुकूल और आवश्यक है। साथ ही इनमें उनका लीला ललाम एवं भक्ति का माधुर्य यथावत सुरक्षित रखा गया है।

श्रीरामकृष्ण, जगत् में मातृभाव की स्थापना के लिए अवतरित हुए थे – यह एक निर्विवाद सत्य है। इसका तात्पर्य है कि मातृभाव के साथ वात्सल्य भाव की प्रतिष्ठा भी उतनी ही आवश्यक है। यह महान् कार्य श्रीसारदादेवी के द्वारा सम्पन्न हुआ है। इसकी स्पष्ट अनुभूति पाठकों “अधिक आवश्यकता है – कहने की आवश्यकता नहीं है।

भारतीय इतिहास में प्रतिभा (Genius) तथा चरित्र (Character) के संतुलन का संकट सदा से रहा है। प्रतिभा चरित्र का अनुपात (G. C. Ratio) बहुत चौड़ा (Broad) रहा है। इस अनुपात को संकरा करने की आवश्यकता थी, आज भी है और आगे भी रहेगी। यही प्रयोजन था श्रीरामकृष्ण और विवेकानन्द के मिलन का। ईश्वरत्व (Godliness) के साथ मनुष्यत्व (Manliness) का मिलन – धर्म का प्रखर सन्देश है जो स्वामी विवेकानन्द के बहुमुखी व्यक्तित्व (Multifaceted Personality) में देखा जा सकता है। व्यक्तित्व के विकास द्वारा ही अध्यात्म के शिखर पर पहुँचा जा सकता है, पहले नहीं।

श्रीरामकृष्ण-वचनामृत और स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानों, पत्रों और कविताओं से हमें यह ज्ञात होता है कि श्रीरामकृष्ण मानो सूत्र और स्वामी विवेकानन्द उसके भाष्यकार थे।
General
  • Author
    Swami Virajananda
  • Translator
    Dr. Sureshachandra Sharma
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