








Product Details
Specifications
वेदान्त के प्रकरण ग्रन्थों में नि:सन्देह यही सर्वाधिक सहज, सरल तथा लोकप्रिय कृति है । कहते हैं कि यही श्रीमत् शंकराचार्य द्वारा रचित ग्रन्थों में अन्तिम है । इसमें हमें उनकी भाषा की मनोहारिता तथा विषय-प्रस्तुति की कुशलता का जीवन्त निदर्शन प्राप्त होता है । इसमें उन्होंने गुरु-शिष्य संवाद के माध्यम से वेदान्त की सर्वांगीण प्रक्रिया बतायी है । ग्रन्थ के ४९ वें श्लोक में जिज्ञासु शिष्य अपने श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ गुरु के समक्ष सात प्रश्न रखता है – ‘‘(१) बन्धन क्या है? (२) यह कैसे आया है? (३) यह कैसे स्थित है? (४) इससे मुक्ति का क्या उपाय है? (५) अनात्मा क्या चीज है? (६) परम आत्मा क्या है? (७) इन दोनों – आत्मा-अनात्मा – के बीच विवेक कैसे हो?’’ यह ग्रन्थ इन्हीं प्रश्नों के उत्तर के रूप में वेदान्त की प्रक्रिया तथा सिद्धान्त का सहज पद्धति से निरूपण करता है । ग्रन्थ में बारम्बार तथा अनेकों प्रकार से नाम-रूपात्मक संसार का मिथ्यात्व और साच्चिदानन्दात्मक जीव का ब्रह्मत्व निरूपित किया गया है ।
General
- AuthorSrimad Shankaracharya
- TranslatorSwami Videhatmananda