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H043 Jati, Samskriti aur Samajvad (जाति, संस्कृति और समाजवाद)

H043 Jati, Samskriti aur Samajvad (जाति, संस्कृति और समाजवाद)

Non-returnable
Rs.15.00
Author
Swami Vivekananda
Compiler/Editor
N/A
Translator
Pandit Dwarkanath Tiwari
Language
Hindi
Publisher
Ramakrishna Math, Nagpur
Binding
Paperback
Pages
74
ISBN
9789384883409
SKU
H043
Weight (In Kgs)
0.075
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Product Details
Specifications
प्रस्तुत पुस्तक स्वामी विवेकानन्दजी के, ‘जाति, संस्कृति और समाजवाद’ पर मौलिक एवं उद्बोधक विचारों का संकलन है। ये सब स्वामीजी के ग्रंथों के विभिन्न भागों से चुनकर संग्रहित किए गए हैं। इनमें स्वामीजी ने हिन्दू जाति की सामाजिक व्यवस्थाओं की पाश्चात्यों की सामाजिक व्यवस्था के साथ तुलना करते हुए उन्नति के रहस्य पर प्रकाश डाला है। हमारी इस महान् हिन्दू जाति का एक आदर्श रहा है और उस आदर्श की बुनियाद पर ही उसने अपनी समस्त जाति-व्यवस्था की रचना की थी। यह पुराकाल में एक अत्यन्त गौरवशाली संस्था रही है। पर आज हम देखते हैं कि वह नष्टगौरव हो धूल में मिली जा रही है। उसका वह आदर्श क्या था, जिसके बल पर वह युगों तक समस्त राष्ट्रों की अग्रणी बनी रही? उसका पतन कैसे हुआ और वह आज की इस हीन दशा में कैसे पहुँची — इसका चित्र स्वामीजी ने अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ अपनी मर्मस्पर्शी भाषा में अंकित किया है। साथ ही, स्वामीजी ने उस आदर्श तक पुन: उन्नति करने के उपायों का भी निर्देश किया है। स्वामीजी समाजवाद के प्रेमी थे, पर वे चाहते थे कि उसका आधार यावत् अस्तित्व का आध्यात्मिक एकत्व हो। वे समाज में क्रान्ति चाहते थे, पर यह उनकी इच्छा नहीं थी कि वह हिंसात्मक हो अथवा विप्लव का रूप धारण करे, वरन् उसकी बुनियाद पारस्पारिक प्रेम एवं अपनी संस्कृति की यथार्थ जानकारी हो। वे इससे सहमत नहीं थे कि समाज में समता स्थापित करने के लिए हम पाश्चात्यों का अन्धानुकरण करें, वरन् वे चाहते थे कि हम अपनी संस्कृति एवं आध्यात्मिकता द्वारा परिचालित हों। विकास सदैव भीतर से ही होना चाहिए। हमें जिसकी आवश्यकता है, वह है भारत के महान् आध्यात्मिक आदर्शवाद के साथ पाश्चात्यों के सामाजिक उन्नति विषयक विचारों का संयोग।
General
  • Author
    Swami Vivekananda
  • Translator
    Pandit Dwarkanath Tiwari
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