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मनुष्य का जीवन एक अन्तहीन यात्रा या अन्धी दौड़ नहीं है । मनुष्य का जन्म जीवन में एक महान् लक्ष्य की प्राप्ति के लिये हुआ है । यह लक्ष्य क्या है? विश्ववन्द्य स्वामी विवेकानन्दजी ने हमें बताया है कि मानव-जीवन का लक्ष्य है अपने महान् दिव्य स्वरूप की अनुभूति और अभिव्यक्ति । वे कहते हैं ``प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रह्म है । बाह्य एवं आन्तरिक प्रकृति को वशीभूत करके आत्मा के इस ब्रह्म भाव को व्यक्त करना ही जीवन का चरम लक्ष्य है ।' मानव-जीवन की अशान्ति और दुखों का सबसे बड़ा कारण यही है कि मनुष्य आज लक्ष्यहीन जीवन जी रहा है या उसने अनित्य भौतिक सुखों को ही जीवन का चरम लक्ष्य मान लिया है । व्यक्ति और समाज दोनों के दुख और अशांति का कारण यही है । अत: आज की सर्वप्रथम आवश्यकता यही है कि हम मानव-जीवन के इस महान् उद्देश्य पर विचार करें । उस पर चिन्तन और मनन करें । तथा अपने आप की परीक्षा कर देखें कि कहीं हमारा जीवन एक लक्ष्यहीन अन्धी दौड़ तो नहीं हो गया है । कहीं हम केवल भौतिक सुखों की ओर ही तो नहीं भाग रहे हैं?
General
- AuthorSwami Satyarupananda
- Compiler/EditorSwami Prapattyananda