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Jivanmukta Turiyananda ( जीवन्मुक्त तुरीयानन्द )

H169 Jivanmukta Turiyananda (जीवन्मुक्त तुरीयानन्द)

Non-returnable
Rs.60.00
Author
Swami Jagadishwarananda
Translator
Swami Videhatmananda
Language
Hindi
Publisher
Ramakrishna Math, Nagpur
Binding
Paperback
Pages
208
SKU
H169
Weight (In Kgs)
0.36
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Product Details
Specifications
स्वामी तुरीयानन्द बचपन में हरिनाथ के नाथ से परिचित थे और तभी से उन्होंने ईश्वर की खोज को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था । इसके लिए उन्होंने आजीवन कठोर संयम तथा त्याग-तपस्या का जीवन बिताया था । शास्त्रों में निरूपित तत्त्वों के मानो वे जीवन्त विग्रह थे । बाल्यकाल से ही उनके मन में जीवन्मुक्ति की कामना जाग्रत थी । निम्नलिखित पत्रांश से उनका जीवन-दर्शन स्पष्ट हो उठता है — ‘‘जीवन्मुक्ति-सुखप्राप्ति हेतवे जन्मधारितम् । आत्मना नित्यमुत्तेन न तु संसारकाम्यया । (अर्थात् — वह नित्यमुक्त आत्मा किसी सांसारिक कामना से नहीं, अपितु जीवन्मुक्ति के सुख का आस्वादन करने के लिए ही जन्म लेती है ।) शंकराचार्य का उपरोक्त श्लोक जब मैंने सर्वप्रथम पढ़ा, उस समय मेरे मन में जिस अद्भुत आनन्द तथा आलोक का उदय हुआ था, उसे आपको कैसे समझाऊँ? उसी समय मानो जीवन का कर्तव्य स्पष्ट हो उठा और अपने-आप ही सारी समस्याओं का पूर्ण समाधान हो गया । तभी मैंने समझ लिया था कि मानव-देह धारण करने का एकमात्र उद्देश्य जीवन्मुक्ति के सुख की प्राप्ति ही है, दूसरा कुछ भी नहीं । वास्तव में नित्यमुक्त आत्मा अन्य किसी कारण से देहधारण नहीं करती । देहधारण करके भी वह मुक्त है, इसी भाव की उपलब्धि के लिए उसका देहधारण होता है ।’’
General
  • Author
    Swami Jagadishwarananda
  • Translator
    Swami Videhatmananda
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