





H162 Ishavasya Upanishad (ईशावास्य-उपनिषद् : शांकर भाष्य तथा हिन्दी अनुवाद सहित)
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सनातन वैदिक धर्म के ज्ञानकाण्ड को उपनिषद् कहते हैं। सहस्रों वर्ष पूर्व भारतवर्ष में जीव-जगत् तथा तत्सम्बन्धी अन्य विषयों पर गम्भीर चिन्तन के माध्यम से उनकी जो मीमांसा की गयी थी, इन उपनिषदों में उन्हीं का संकलन है। वैसे इनकी संख्या दो सौ से भी अधिक है, परन्तु आदि शंकराचार्य ने जिन दस पर भाष्य लिखा है और जिन चार-पाँच का उल्लेख किया है, उन्हें ही प्राचीनतम तथा प्रमुख माना जाता है। पूज्यपाद श्री शंकराचार्य के काल में भी ये उपनिषद् अत्यन्त प्राचीन हो चुके थे और उनका अर्थ समझना दुरूह हो गया था, अत: उन्होंने वैदिक धर्म की पुन: स्थापना हेतु प्रमुख उपनिषदों पर सरस भाष्य लिखकर अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। इन उपनिषदों में से अत्यन्त लघु परन्तु अतीव महत्त्वपूर्ण ईश या ईशावास्य उपनिषद् हमें शुक्ल यजुर्वेद के अन्तिम अध्याय के रूप में प्राप्त होता है । प्राचीन काल में जब संस्कृत भाषा ही शिक्षा का प्रमुख माध्यम थी, तब इन दुरूह ग्रन्थों को पढ़ना तथा इनके गूढ़ तात्पर्य को समझना उतना कठिन नहीं था, परन्तु देवभाषा का पठन-पाठन क्रमश: अप्रचलित होते जाने के कारण अल्प संस्कृत जाननेवालों के लिये इनका अध्ययन सहज नहीं रह गया है। व्याकरण-शास्त्र के अनुसार गद्य में सन्धि का प्रयोग वैकल्पिक है, अत: हमने यहाँ पर सामान्य अध्येताओं को इस अध्ययन में प्रोत्साहित करने हेतु भाष्य की कठिन सन्धियों को तोड़कर उन्हें सरल रूप देने का प्रयास किया है।
General
- AuthorSrimad Shankaracharya
- TranslatorSwami Videhatmananda