














H136A Shri Maa Saradadevi Ki Divya Lila - Set of 2 Books (श्रीमाँ सारदादेवी की दिव्य लीला)
प्रस्तुत ग्रन्थ श्रीमाँ सारदादेवी की जीवनी है। वे इस युग की आध्यात्मिक अवतार, श्रीरामकृष्ण परमहंस की सहधर्मिणी और आध्यात्मिक सहचरी थीं। आजकल, माँ सारदा देवी को उनके भक्त प्रेम और श्रद्धापूर्वक ‘श्रीमाँ’ के रूप में सन्दर्भित करते हैं। जब हम उनके जीवन का गहराई से अध्ययन करते हैं, तो हम पाते हैं कि उन्होंने अपनी दिव्य लीला तीन भागों में सम्पन्न की।
सबसे पहले उनकी आदि लीला या प्रारम्भिक लीला थी, जिसमें १८५३ से १८८६ तक की घटनाएँ सम्मिलित हैं। वे पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव जयरामवाटी में पली-बढ़ी थीं और बचपन में ही उनका विवाह श्रीरामकृष्ण से हो गया था। १८ साल की उम्र में वे कलकत्ता के पास दक्षिणेश्वर में श्रीरामकृष्ण के साथ रहने लगीं और १८८६ में उनकी महासमाधि तक कभी-कभी उनके साथ रहती थीं। दूसरी थी उनकी मध्य लीला, जिसमें १८८७ से १९०८ तक की घटनाएँ सम्मिलित हैं। इस अवधि के दौरान वे तीर्थयात्राओं पर गईं, विभिन्न कठिनाइयों से गुज़रीं और धीरे-धीरे श्रीरामकृष्ण के आध्यात्मिक आदर्शों का संचालन करने लगीं। तीसरी थी उनकी अन्त्यलीला या अन्तिम लीला, जिसमें १९०९ से १९२० तक की घटनाएँ सम्मिलित थीं। उन्होंने अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर आध्यात्मिक खजाने की वर्षा करके अपना दैवीय भाव प्रकट किया। पाठकों की सुविधा के लिए हम इस पुस्तक को दो भागों में प्राकशित कर रहे हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रथम भाग में १ से २४ तक के अध्याय सम्मिलित हैं। पाठक अध्याय १ से ९ में देखेंगे कि कैसे उन्होंने स्वयं को विश्व गुरु बनने के लिए तैयार करके अपनी दिव्य लीला की शुरुआत की थी; अध्याय १० से २४ में, कैसे उन्होंने अपने आदर्श जीवन में चार योगों का प्रदर्शन करके अपनी लीला को निभाया। प्रेम और करुणा के अपने सहज प्रवाह के माध्यम से उन्होंने अपना यथार्थ स्वरूप प्रकट किया और अपने शिष्यों एवं भक्तों को अभय प्रदान किया।
श्रीमाँ का सरल और पवित्र जीवन हमें प्रेरित करता है; उनकी विनयशीलता और विनम्रता हमें अभिभूत कर देती है; उनका प्रेम और करुणा हमारे हृदय पर विजय प्राप्त कर लेती है; उनका संघर्ष और पीड़ा हमें जीवन की सभी कठिनाइयों और संकटों का सामना करने के लिए शक्ति प्रदान करती है; उनकी सहनशीलता हमें दूसरों की तुलना में अधिक धैर्यवान बनाती है; उनकी कृपा और क्षमा हमें उनकी दिव्यता से अवगत कराती है; उनकी सच्चाई और एकनिष्ठा हमें विश्वास दिलाती है कि हम उन पर विश्वास कर सकते हैं; उनका सामान्य ज्ञान और मन की उपस्थिति हमें व्यावहारिक होना सिखाती है; उनकी निःस्वार्थ सेवा और समर्पण हमारे जीवन के लिए आदर्श है। उन्होंने अपने दैनिक जीवन में वेदान्त के उच्चतम सत्यों को प्रस्तुत किया और सक्रिय जीवन के साथ चिन्तनशील जीवन को सामंजस्यपूर्ण ढंग से समेटा। माँ का दिव्य जीवन हताश आत्माओं के लिए एक प्रकाशस्तम्भ है। उनका जीवन और सन्देश गरीब और वंचित लोगों के साथ-साथ उन लोगों की भी सहायता करता है जो जीवन के उद्देश्य की खोज में आशा खो चुके हैं। असंख्य लोग उनके सरल जीवन और व्यावहारिक उपदेशों से शान्ति और आनन्द, सान्त्वना और सहायता प्राप्त कर रहे हैं।
हम श्रीरामकृष्ण या श्रीमाँ को भौतिक रूप से नहीं देख सकते हैं, लेकिन उनका जीवन और शिक्षाएँ दुनिया भर में अनगिनत लोगों के हृदय में विद्यमान हैं। पूर्व और पश्चिम में लाखों-करोड़ों लोग अब प्रतिदिन उनके बारे में विचार और ध्यान करते हैं। हर महान् धार्मिक व्यक्तित्व सभी को आश्रय और शान्ति प्रदान करता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में कई पुस्तकों और पत्रिकाओं से सामग्री एकत्र की गई है, जिन्हें अन्त में सन्दर्भों में सूचीबद्ध किया गया है। इस जीवनी में अधिकांश मूल्यवान जानकारी और प्रत्यक्षदर्शी विवरण श्रीश्री मायेरकथा से एकत्रित किए गए हैं।
आम तौर पर, जीवनीकार महान् लोगों के जीवन में महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और महत्त्वहीन विवरणों को छोड़ देते हैं, लेकिन इस पुस्तक में माँ की जीवनी के सबसे छोटे पहलुओं से भी पाठक को अवगत कराने के प्रयास में दोनों को शामिल किया। श्रीमाँ के जीवन की व्याख्या करना कठिन है, फिर भी इस पुस्तक में सभी तथ्य और आँकड़े, कहानियाँ और प्रसंग पाठक के सामने प्रस्तुत किए हैं। विचार और कथन की निरन्तरता के लिए कुछ उद्धरणों का एक से अधिक बार उपयोग किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक में श्रीमाँ सारदा देवी की इस जीवनी को यथासम्भव कालानुक्रमिक बनाने का प्रयास किया है, साथ ही इसे पठनीय और समझने योग्य भी बनाया है। इस पुस्तक में श्रीमाँ के जीवन के कालक्रम के सम्बन्ध में पिछले पचास वर्षों में विभिन्न शोधकर्ताओं के प्रयासों से कई नई सामग्रियाँ सामने आई हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ के द्वितीय भाग में २५ से ३५ तक के अध्याय, उपसंहार, परिशिष्ट (१-५) और वर्णानुक्रमणिका सम्मिलित हैं। इस द्वितीय भाग में माँ जिन विभिन्न कठिनाइयों से गुजरीं उन घटनाओं तथा उनकी अन्त्यलीला या अन्तिम लीला (१९०९ से १९२० तक की घटनाओं) का वर्णन है। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति पर अपनी करुणा का वर्षण किया।
पाठक अध्याय २५ से २८ में देखेंगे कि कैसे उन्होंने सबकी माँ, और विश्व गुरु बनने के लिए स्वयं को तैयार करके अपनी दिव्य लीला की शुरुआत की, कैसे उन्होंने अपने आदर्श जीवन की लीला को निभाया; और अध्याय २९ से ३५ में, कैसे उनकी लीला का धीरे-धीरे संवरण हुआ। उन्होंने प्रेम और करुणा से अपने शिष्यों और भक्तों का कल्याण किया।
श्रीमाँ का जीवन विनम्रता, प्रेम और करुणा, कठिनाइयों और संकटों, सहनशीलता, धैर्य, कृपा, क्षमा, एकनिष्ठा, निःस्वार्थ सेवा और समर्पण के भाव से ओतप्रोत है। श्रीमाँ ने वेदान्त के उच्चतम सत्यों को अपने आदर्श जीवन द्वारा प्रतिपादित किया। उन्होंने दैनिक जीवन में सामंजस्य द्वारा संतप्त आत्माओं के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने समाज के वंचित लोगों की भी सहायता की जो जीवन के उद्देश्य को भूल चुके थे। अनगिनत लोग उनके दिव्य जीवन से शान्ति, सान्त्वना और सहायता प्राप्त कर रहे हैं।
श्रीमाँ का जीवन अनगिनत लोगों के लिए ध्यान का केन्द्र बन गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में कई पुस्तकों और पत्रिकाओं से महत्त्वपूर्ण विवरण सम्मिलित किये गये हैं।
इस ग्रन्थ में माँ की जीवनी के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं को सम्मिलित किया गया। श्रीमाँ के जीवन का वर्णन करना कठिन है, लेकिन विचार और कथन की निरन्तरता के लिए कुछ उद्धरणों का एक से अधिक बार उपयोग करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किए गये हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में श्रीमाँ सारदा देवी की जीवनी को पठनीय और समझने योग्य बनाने हेतु शोधकर्ताओं के प्रयासों से कई नई सामग्रियाँ प्रस्तुत की गई हैं।
General
- AuthorSwami Chetanananda
- TranslatorLaxminarayan Induriya