




H077 Vivekananda - Rashtra Ko Ahvan (विवेकानन्द - राष्ट्र को आह्वान)
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वस्तुस्थिति यह है कि आज भारतवर्ष में हम विभिन्न मत-मतान्तर तथा विचारधाराओं में घोर पारस्परिक संघर्ष पा रहे हैं। फलत: देश भर में बड़ी अनिश्चितता तथा बेचैनी व्याप्त है। हो यह रहा है कि प्राचीन मूल सिद्धान्तों का चिरन्तन सत्य-समूह जिसने हमें शक्ति दी थी, उत्साह एवं साहस प्रदान किया था, आज मानो एक किनारे खदेड़ दिया गया है और उसकी जगह अनेक नयी राजनीतिक तथा सामाजिक विचारधाराओं ने अपना अड्डा जमा लिया है, यहाँ तक कि आज चारित्रिक मापदण्ड भी बदल रहा है। ऐसा लगता है कि मानो इन सब नवीन विचारों ने देश पर धावा ही बोल दिया हो। यह विचारने की बात है! अत: स्वत:सिद्ध मीमांसा यह है कि आज हमारे सम्मुख एक ऐसा मापदण्ड प्रस्तुत हो जो हमें सब बातों का ठीक ठीक सुस्पष्ट तथा असली मूल्य आँकने में सहायता करे और यह चीज नवयुवकों के लिए तो और भी अधिक आवश्यक है जिससे कि वे बिल्कुल सही, असंदिग्ध और परिष्कृत मार्ग पर अग्रसर हो सकें। आज की परिस्थिति में स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएँ तथा उनका सन्देश हमारे लिए कितना मूल्यवान है, इसे आँकना सहज नहीं। हमारे राष्ट्रीय जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं, ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका हल हमें उनकी शिक्षाओं में न मिल जाता हो — वे समस्याएँ चाहे किसी व्यक्ति की हों, समाज की हों अथवा देश की हों। उनके शब्द सामान्य नहीं — शक्ति से भरपूर तथा ओजस्विता से पूर्ण हैं और वह ओजस्विता आध्यात्मिकता-जनित है। यह निश्चय है कि उनकी वाणी से हमें उत्साह तथा आलोक प्राप्त होगा जिससे हम राष्ट्र का निर्माण सही मायनों में और ठीक ढंग से कर सकते हैं।
General
- AuthorSwami Vivekananda
- Compiler/EditorCompilation