




H066 Bhagavan Sri Krishna aur Bhagavad-Gita (भगवान श्रीकृष्ण और भगवद्गीता)
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प्रस्तुत पुस्तक अद्वैत आश्रम, मायावती द्वारा प्रकाशित `विवेकानन्द साहित्य' से संकलित की गयी है। फलत: इस बृहत विवेकानन्द साहित्य में विभिन्न स्थलों पर भगवान श्रीकृष्ण और भगवद्गीता के सम्बन्ध में जो विचार प्रकट हुए हैं उनका इस पुस्तक में समावेश है। स्वामीजी द्वारा देश विदेश में दिये गये व्याख्यानों, उनके सम्भाषणों और लेखों में यह विचार अभिव्यक्त हुए हैं। श्रीकृष्ण के दिव्य व्यक्तित्व के यथार्थ स्वरूप का तथा उनके जीवन में सर्वोच्च रूप में प्रकटित ज्ञान, भक्ति, कर्म एवं योग का स्वामीजी द्वारा किया हुआ मौलिक विवरण इस पुस्तक में प्रस्तुत है। किस प्रकार बुद्धि, हृदय एवं कर्मशक्ति का विकास करना चाहिए और इस विकास के द्वारा मोक्ष या पूर्णत्व की प्राप्ति कर लेनी चाहिए – यह भगवान ने गीता में दर्शाया हैं। भगवद्गीता का यही समन्वयात्मक उपदेश हमारे सामने रखते हुए, स्वामीजी ने बड़े सुन्दर ढंग से दर्शादिया है कि गीता में निहित शक्तिदायी एवं जीवनदायी उपदेश भारत की वर्तमान स्थिति में अत्यन्त आवश्यक है। श्रीकृष्ण के जीवन का केन्द्रीय भाव है अनासक्ति; और इसी अनासक्ति से युक्त होकर ही ईश्वरार्पणबुद्धि द्वारा यथार्थ लोकहित किया जा सकता है – यही उनका बहुमूल्य उपदेश है। स्वामी विवेकानन्द ने अपनी अलौकिक प्रतिभा से श्रीकृष्ण का जो सर्वांगसम्पूर्ण जीवनचरित्र परिणामकारक शब्दों तथा आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया है, उसका प्रत्येक पाठक के हृदय तथा मन पर गहरा प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है। हमें विश्वास हैं कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करनेवाले व्यक्तियों को इस पुस्तक में अभिव्यक्त विचारों द्वारा निश्चित मार्गदर्शन का लाभ होगा।
General
- AuthorSwami Vivekananda